माँ
हाथ पकड़ चलता था जो कभी,
वो बेटा वृद्ध आश्रम में माँ को बिठा गया।
दे कर दिलासा लौट कर आने का,
वो अपना पल्ला झड़ा गया।
वो जानती है अब ना लौटेगा वो कभी,
उसका लाल उससे पीछा छुड़ा गया।
भोली है उसकी ममता,इंतजार में बैठी हैं,
उसे क्या पता उसका लाल आश्रम तक आ कर चला गया।
आँख धुँधला गई उसकी पर आस बांधे है,
काँपते हाथों से फिर तीसरा स्वेटर बुना गया।
रोज चिठ्ठीयों पर अक्षर तलाशती है,
कोई खत हो सके उसको लिखा गया।
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