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Who's CULPRIT?

You can start reilly, candle march, you can block road ways and create huge havoc all over the place. No doubt it can be helpful to the family of rape victim at some extent. But what about countless awaiting Nirbhayas, Dishas, Manishas? Can it be helpfull to prevent such horrendous drastic incident? If you would ask me, my answer is NO. It'll not stops those hungry leaches to commit such acts. So the question arises, what should be done? Make another law? Again I would say NO it won't stop such criminal acting. Then WHAT? Law can never prevent crime. It can only punish(depends) the criminal after a crime has taken place. Rape is not a territorial issue, it is the global issue. Every country is struggling with this. USA is ten times worse than India, recently Liberia declared Rape as a National Emergency. It is a subject of Human Failure, lack of morality and ethics. To do such dehumanized act what kind of thoughts and mentality a human mind can possessed. Surely normal human ca

कालचक्र

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मत कर सवाल इतने कि जवाब दे न सकूंँ,  थककर बैठूँ ऐसे की और ख्वाब ले न सकूँ। मोहलत मिले कुछ तो हरारत जाग जाती है, सफर लंबा बचा है सोचकर आरामीयत भाग जाती है। "दुनिया", तेरी बातों में मन लग तो जाता है, पर मुझे "जिंदगी", तेरी भाग-दौड़ का डर सताता है। आज ही बागीचे में एक नई कोपल दिखी है, शाम बीते लम्हा न हुआ फिर बादल गडगडाता है। एक मुद्दत के बाद परिंदे ने फिर अशियां बुना है, हवा फिर रुख बदलने को बेसबर है, मैने सुना है। फटा बादल तो, गजब ढाँ गया है, कभी जो शान से खडे़ थे...माटी में मिला गया है। थका बैठा है, आसमान ताकता है, "बेबस" कुछ दम भरता है, फिर भागता है। कई छेद है उसमे, कहीं चिथड़े जडे़ हुए, वो पल्ला जो मेरी माँ का सिर ढाँकता है। मत कर सवाल इतने कि जवाब दे न सकूँ,  थककर बैठूँ ऐसे फिर ख्वाब ले न सकूँ। आज़माता है, डराता है, तो थपथपाता है कभी,  वक्त का पलना है... गिराता है, तो झूलाता है कभी। गिरती है गाज तो हम पर ही गिरे क्यों,  मिलता है जो घर वो मेरा ही मिले क्यों।  मैं जो कह दूँ तो शिकायत लगती है, आहट है, जो आगाज-ऐ-बगावत लगती है। खामोश फितरत नहीं त

ठोर न बदले...

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  यूँ तो बात बड़ी करते हो मन की पीर भी हर न पाये।  तन माटी का लेकर घूमे नीर लगे तो घुल-घुल जाये।। कौन दीन का है तू इंसा गलती करे फेर पछतावे। कहाँ लगा भाग-दौड़ में जहाँ से आयो बई ठोर है जाने।।  लम्बी कोई क्षण भर की जो जिए वो जाको मोल न जाने। कर दिजे नाश, माठी को राख जितने व्यसन बे सब कर डाले।।  लक्षण खोये, खो दयो चरित और बैठ सभा में सब गिनवावे। शरम रही न बची प्रतिष्ठा झूठे ठाठ को मर-मर जावे।। ठाठ-बाट में कमी कछु नाई अपने सुख से बड़ो कछु नाई। दूजन के अवगुण सब दीख गये अपने पाप नजर नही आवे।। वाह रे, मानुस... कौन सी धुन में रहे "नम्रता", भांप बने जो उड़ जावेगो वो खुद को परमेश्वर माने।। सुख-दुःख में जो कटे काट ले अपनो छोड़ पराये पे काये लार बहावे। उसकी धुन में लग जा "भटके" सुख-दुःख सब फिर मन को भावे।। जितनी है जी भर के जी ले जाने कब पूर्णविराम लग जाये। पछतावा न रहे तनिक भी जीते जी जो जी न पाये।। तन माटी को लेकर घूमे नीर लगे तो घुल-घुल जाये...

मंजिल के रास्ते

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रूक,  ठहर,  कभी बैठ पहर-दो पहर जिंदगी है थमेगी नही कभी अधर से शिकायत कहेगी नही।  माना सफर लम्बा बहुत है भागने से मंजिल मिलेगी नही। यूँ दौडेगा तो थक जाएगा कुछ देर बाद हाँफेगा और रूक जाएगा। माना की तुम्हें देर रास नही आती पर बेवजह की जिद्द भी तो काम नही आती। एक उम्र काट दी, कुछ आधी और बाकी है जरा एक बात बता, तेरे सफर का तनहाई क्यों साथी है।  सफर दूर का है, माना तू भी मजबूर सा है अकेला कब तक चलेगा कभी तो अकेलापन भी खलेगा। ये रास्ते का स्वभाव है चलेगा ही कभी न कभी मंजिल से मिलेगा ही।  पर ये न सोच की ये थम जाएगा फिर कोई नया सफर बन जाएगा।  पर मंजिल की दौड़ में हम भूल जाते हैं रास्ते में जीने से थोड़ा कतराते हैं। ये रास्ता ही तो है जो मंजिल दिलाता है तुम्हें थकन भरी रात में थपथपाता है। कुछ एक-आध बातें इससे भी करो मंजिल तो वहीं है, बस तुम सही रास्ते पर चलो।  सही है, भागोगे तो थक जाओगे हाँफ कर रूक जाओगे। रास्तों में जीने का हुनर सीख लो गिर कर उठने की कदर सीख लो।  जीत जाओगे मंजिल.... जो रास्ते से जुड़ जाओगे। भागोगे तो थक जाओगे....

अब सुर में रहती हूँ

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मुझे सुनता है पर जवाब नही देता सपनों के बुत बनाता जरूर है बस उन्हें असलियत का लिबास नही देता।  बडी चहलकदमी में रहता है ये मन कुछ लम्हे क्या मिले फुरसत के फिर इक लम्हा भी मिरे पास नही रहता। जो साथ होता है तो दूर तक ले जाता है मेरे शब्दों में आवाज नही होती फिर भी ये मन मुझे बेसुरा बताता है। बेसुरा कहे भी क्यों ना, परेशान जो है मेरी बेवजह की जिद्द से हैरान जो है।  कल ही किसी बात पर अड़ कर बैठी थी फिर हुई सुबह और मैं सिर पकड़ कर बैठी थी।  मुड़ना था बांए को, मैं दाएँ जाना चाहती थी "लोग क्या-क्या सोचेंगे" ये सोच कर रूक जाती थी। सच है ये मन परेशान तो बहुत है मुझमे ही उडने का हौसला कम था वरना खुले पंखों के लिए आसमान तो बहुत है। थोड़ी देर से ही सही पर हिम्मत की अब बुतों को लिबास दे दिए हैं  इन पंखों को उडने को आसमान दे दिए हैं । मैं अब खुद को सुरीली लगती हूँ जिद्द अब भी कुछ कम नही बस अब सही-गलत का फर्क समझती हूँ। 

Hope is all needed...

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Purpose behind the life is beyond the mind...          Sometimes I got too lost in my thoughts that they take me very far from the reality but they also lead me to the actuality. It's really funny to see that how we live our whole life with satisfaction but with the lack of contentment.           We all think that the sole purpose of life is to live a little but earn a lot of money. What are we gonna do with the lot of money. Yes, I agree money is one of the important factor in survival but is it enough to live happily?          A person run his/her whole life to chase dream(yes dream, I am not that cruel to let you chase after money your whole life, am I?). But what are these dreams?  Many people think that earn sufficient money is enough for there survival but for some even a lot is not enough.            We are afraid, which is natural. We fear so many things, like to fall but the fact is we are not afraid to fall, actually we are afraid to get hurt or injured in the process of

जीवन, शिक्षक और मोक्ष!

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       विद्या सारी जिंदगी एक सच्चे मित्र की तरह हमारे साथ रहती है, गलत और सही, अच्छा और बुरा इनके अंतर को समझने में शिक्षक बनती है।       शिक्षक से आज के ब्लॉग का विषय याद आया। हमारे समाज में बहुत पहले से शिक्षक का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। पर मैं आज इससे विपरीत बात कहने आई हूँ।आप पढ़े और बताए आपका नजरिया क्या है।         आदिकाल में जब गुरू को ईश्वर से उच्च स्थान दिया गया था तब असल में वो स्थान गुरूओं ने कड़ी तपस्या और त्याग के बाद कमाया था। गृहस्थ जीवन त्याग कर जीवन का एक बड़ा हिस्सा एकांत में एकमात्र ईश्वर पर ध्यान लगा कर कड़ी मेहनत से कमाया गया स्थान है वो।          क्या आपने कभी सुना है इतिहास में महान गुरू व्यसनकारी थे, नही सुना होगा। पर देवताओं में यह बात आम है। अपनी इच्छाशक्ति को काबू कर, माया से जीता हुआ इंसान जो कितने ही बार देवताओं को भी सत्मार्ग दिखाते हैं, वाकई में वो "गुरू" नाम के दर्जे के हकदार हैं।         अब आते है आज की समस्या पर। हम आज की पीढ़ी के लिए न जाने कितने ही शिकायत करते हैं, तंज लगाते हैं, और कभी-कभी हद हो जाने पर दुःख भी जताते हैं।