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Showing posts from May, 2020

वार्तालाप अहम है!

             कल शाम बड़ी देर तक रास्ता देखती रही, तुम कुछ देर से घर आये,पूछने का मन तो हुआ फिर वही रोज-रोज की किच-किच का सोचकर चुप रह गयी। कल मेरी रचना प्रकाशित हुई थी। तुम्हें अखबार का पन्ना दिखाना चाहती थी, पर तुम थके हुए थे और परेशान करना सही नही लगा।             दूसरी सुबह भी कुछ जल्दी निकल गए दफ्तर को साथ बैठ कर नाश्ता भी नही किया। कभी-कभी लगता है घर की चारदिवारी में हमारे बीच भी एक दिवार हैं। आज पड़ोस में रहने वाली सम्मति आयी  मुझे सोच में डूबा देख पूछ बैठी तो शब्द नहीं मिल रहे थे। कुछ ठीक नहीं है पर क्या ? ये तो मुझे भी नहीं मालूम।            "जब मन अशांत हो और वजह साफ न हो, जो सर्वप्रथम आत्मध्यान एवं स्वयं से प्रश्न करना ही सबसे सही है।  और यदी दाम्पत्य जीवन में कुछ हलचल समझ आये तो साथी से मन की बात कहना और उसकी बात सुनना और समाधान निकालना जरूरी है रिश्तों में एक-दूसरे के बीच पारदर्शिता होना आवश्यक है नहीं तो रिश्तों में  मन की लहरें कब तूफान बन जाए पता नही चलता"।           ये शब्द कहकर सम्मति उसके घर को चली गई, और मैं देर तक उसकी बात पर विचार कर तुमसे बात का निश्च

शोर होना चाहिए!

जल गया दीपक अपनी ही आग से, क्या ढूँढते हो अब बची इस राख में। विश्व ने माना लोहा जिसका, वो तिरंगा झुका जा रहा अपनी ही आँख में। जीत जाते गर जंग बाहरी होती, हम हारे अपनी आस्तीन के सांप से। लहू का हर कतरा बहा वे रुख़सत हुए, कैसे न बहता कतरा हर आंख से। जवान थे, महान थे, साहसी बलवान थे, कोई पत्ता नही जो टूट कर गिर गया साख से। छिन्न-भिन्न पार्थिव शरीर, हर टुकड़ा जोड़कर, कैसे समेटा होगा एक मां ने अपना हिस्सा अपने हाथ से। हद पार कर गए वो, अब तो शोर होना चाहिए, अब जीएंगे तो अन्याय और अधर्म को मार के....

मां भारती

घात ह्रदय पर बैचेन मन हैं, उदास चित्त और भींगे नयन है। मेरा देश ऐसा नही है, माँ के बिन बच्चा सोता नही है। भटके हुए कुछ नादान हैं मां, दिलों में घृणा की अगन हैं। तुझसे प्रेम बहुत है, मेरे लिए तू संपूर्ण जगत है। नीर-ऐ-नयन बरसाओ न तुम, तेरे बच्चों में बहुत सहन है। प्राण-प्रसाद हम हँस कर देंगे, दुश्मन के वार पर तो भारी मां केवल तेरे कंगन की खनक है। झूम कर जीवित तन पर कफन बाँध उत्साह से भरे हैं, तेरी ममता का क्या मोल मां मुझमे तेरी माटी की महक हैं। किस बात की चिंता तुझे उदास मन तू क्यों धरे, तेरी गोद में सिर धर ले मेरा तुझ पर निछावर होने की सनक हैं। घात ह्रदय पर बैचेन मन हैं, उदास चित्त और भींगे नयन है।

सोचती हूँ!

चमक बहुत  है उसमे सोचती हुँ वो चाँद तो नही । मुश्किल है उसे सच कहना सोचती  हूँ वो ख्वाब तो नही। आस-पास लगते हो वाकई तुम साथ तो नही। दर्द से ज्यादा तड़प है तुम कहो ये दर्द अज़ाब तो नही। हम तो कह देंगे  कुछ तुम  कहो चुप -चुप हो कोई बात तो नही। हाँ कुछ खींच-तान दरमियाँ है मुँह फेर लो इतने बुरे हालात तो नही। हम्म!  हवा का  बहाव भारी है यूँ टूट जाते  वो कमजोर साख तो नही। कहीं खोए हो या जुदा हो रहे हो सोचती हूँ ये आखिरी  आदाब तो नही। ख़्वाहिशें  राख हो गई  हाथ बढ़ाने से पहले यूँ दूर हो जैसे हम आफताब तो नही।