छुप-छुप के मोहब्बत निभाती रही हूँ मैं कि जिस रोज वो नही सोया खुद को जगाती रही हूँ मैं। अक्सर रूठ जाता है मेरी इस बात से वो उसके जर्रे-जर्रे में अपनी धूल उडाती रही हूँ मैं। कात...
विद्या सारी जिंदगी एक सच्चे मित्र की तरह हमारे साथ रहती है, गलत और सही, अच्छा और बुरा इनके अंतर को समझने में शिक्षक बनती है। शिक्षक से आज के ब्लॉग का विषय याद आया। हमारे समाज में बहुत पहले से शिक्षक का स्थान सर्वोच्च माना जाता है। पर मैं आज इससे विपरीत बात कहने आई हूँ।आप पढ़े और बताए आपका नजरिया क्या है। आदिकाल में जब गुरू को ईश्वर से उच्च स्थान दिया गया था तब असल में वो स्थान गुरूओं ने कड़ी तपस्या और त्याग के बाद कमाया था। गृहस्थ जीवन त्याग कर जीवन का एक बड़ा हिस्सा एकांत में एकमात्र ईश्वर पर ध्यान लगा कर कड़ी मेहनत से कमाया गया स्थान है वो। क्या आपने कभी सुना है इतिहास में महान गुरू व्यसनकारी थे, नही सुना होगा। पर देवताओं में यह बात आम है। अपनी इच्छाशक्ति को काबू कर, माया से जीता हुआ इंसान जो कितने ही बार देवताओं को भी सत्मार्ग दिखाते हैं, वाकई में वो "गुरू" नाम के दर्जे के हकदार हैं। अब आते है आज की समस्या पर। हम आज की पीढ़ी के लिए न ज...
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