रवाज़-ऐ-मुहब्बत

हर शाम तेरे दर तक आती हूँ,  लौट जाती हूँ,
मानो बेसबब ही कोई रवाज़,  बेवजह ही निभाती हूँ।

Comments

Popular posts from this blog

बहुत भोले हो....

ठोर न बदले...

वापसी