मजबूर हूँ!

मैं चल भी ना पाई तुम संग
थोडे़ से फासलों ने देखो कितना थका दिया,

कोशिशों में थी किसी तरह फिर खडे़ होने की
मेरी कोशिशों ने ही मुझे फिर गिरा दिया।

पैर लड-खड़ा गए छालों के दर्द से
मुझसे हसरतों का बोझ उठाया ना गया,

बची-खुची साँस भी दम तोड़ने को है
ये अलग बात है मुझसे बताया ना गया।

मेरे बाद मुझे ढूँढ कर क्या होगा हासिल
वक्त रहते तुमसे भी तो बुलाया ना गया,

मुझमे है तेरा कुछ हिस्सा गहरे तक
इतनी गहराई तक मुझसे जाया ना गया।

तू खुश रहे दस्तूर- ऐ-जहाँ  के साथ
मुझसे तो इक कदम भी आगे बढ़ाया ना गया।

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