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Showing posts from April, 2019

चुप्पी

जब वास्तों में शोर बढ़ जाए, मुनासिब है  कि हम खामोश हो जाए । ।

जहान....

शौक- ऐ-मोहब्बत पाल कर देख ली हमने, अब हकीकत- ऐ-जहां आज़मा कर देखते हैं। कुछ तुम छुपा कर देख लो, कुछ हम बता कर देखते हैं।।

कभी....

मेरे आने की बात सुन कर, उनका जाना मुनासिब था। कभी मैं उसको हासिल थी, कभी वो मुझको हासिल था।। #अंतर्मन

लिबास

लम्स, अज़ाब, अक्स और ख्वाब..... इनसे मिलकर जो बने वो लिबास हो तुम!!

ख्याल

ख्याल अच्छा था दिल को बहलाने के लिए, लोग जाते हैं अक्सर लौट आने के लिए। अबके जब उनसे मुलाकात हुई सरे-राह तो जाना, लोग रास्ते बदल लेते हैं मुंह छुपाने के लिए।। #अंतर्मन

माँ

हाथ पकड़ चलता था जो कभी, वो बेटा वृद्ध आश्रम में माँ को बिठा गया। दे कर दिलासा लौट कर आने का, वो अपना पल्ला झड़ा गया। वो जानती है अब ना लौटेगा वो कभी, उसका लाल उससे पीछा छुड़ा गया। भोली है उसकी ममता,इंतजार में बैठी हैं, उसे क्या पता उसका लाल आश्रम तक आ कर चला गया। आँख धुँधला गई उसकी पर आस बांधे है, काँपते हाथों से फिर तीसरा स्वेटर बुना गया। रोज चिठ्ठीयों पर अक्षर तलाशती है, कोई खत हो सके उसको लिखा गया।

रवाज़-ऐ-मुहब्बत

हर शाम तेरे दर तक आती हूँ,  लौट जाती हूँ, मानो बेसबब ही कोई रवाज़,  बेवजह ही निभाती हूँ।

हसरतें

सिसकती रह गयी आँखें, हसरते चुपचाप दम तोड़ गई। जाना हमें भी था मंजिल तलक़, फिर मंजिल ही राह में छोड़ गई।।

दस्तूर....

अजब दस्तूर-ऐ-मोहब्बत निभाने को कहते हो दिल-ऐ-दाग़ दार से मुस्कराने को कहते हो। खुद आते हो याद हद की हद तक और मुझसे भूल जाने को कहते हो।।

मजबूर हूँ!

मैं चल भी ना पाई तुम संग थोडे़ से फासलों ने देखो कितना थका दिया, कोशिशों में थी किसी तरह फिर खडे़ होने की मेरी कोशिशों ने ही मुझे फिर गिरा दिया। पैर लड-खड़ा गए छालों के दर्द से मुझसे हसरतों का बोझ उठाया ना गया, बची-खुची साँस भी दम तोड़ने को है ये अलग बात है मुझसे बताया ना गया। मेरे बाद मुझे ढूँढ कर क्या होगा हासिल वक्त रहते तुमसे भी तो बुलाया ना गया, मुझमे है तेरा कुछ हिस्सा गहरे तक इतनी गहराई तक मुझसे जाया ना गया। तू खुश रहे दस्तूर- ऐ-जहाँ  के साथ मुझसे तो इक कदम भी आगे बढ़ाया ना गया।

दास्तान

दास्तां     मैं सोच में डूबी थी    वो मुझमे तैर गया,    वो करीब रहा मेरे    बस, फिर भी गैर रहा।               बेहाल रही कब तक                तुम मेरे हाल पे झेपो ना,                मेरा वक्त खराब था                मिरा मीत नहीं था बुरा।    मैं उस पार खड़ी रही    वो इस पार रहा खड़ा,    दोष किनारों का  नहीं    बस, लहरों का बहाव तेज था।                 इक पल की बात नहीं                 सारे जीवन कि  है  दासतां,                 तुम मिले और रह गए मुझमे                 ढूँढने को तुम्हें, मैं क्यों जाऊँ यहाँ-वहाँ।