मंजिल के रास्ते
रूक, ठहर, कभी बैठ पहर-दो पहर जिंदगी है थमेगी नही कभी अधर से शिकायत कहेगी नही। माना सफर लम्बा बहुत है भागने से मंजिल मिलेगी नही। यूँ दौडेगा तो थक जाएगा कुछ देर बाद हाँफेगा और रूक जाएगा। माना की तुम्हें देर रास नही आती पर बेवजह की जिद्द भी तो काम नही आती। एक उम्र काट दी, कुछ आधी और बाकी है जरा एक बात बता, तेरे सफर का तनहाई क्यों साथी है। सफर दूर का है, माना तू भी मजबूर सा है अकेला कब तक चलेगा कभी तो अकेलापन भी खलेगा। ये रास्ते का स्वभाव है चलेगा ही कभी न कभी मंजिल से मिलेगा ही। पर ये न सोच की ये थम जाएगा फिर कोई नया सफर बन जाएगा। पर मंजिल की दौड़ में हम भूल जाते हैं रास्ते में जीने से थोड़ा कतराते हैं। ये रास्ता ही तो है जो मंजिल दिलाता है तुम्हें थकन भरी रात में थपथपाता है। कुछ एक-आध बातें इससे भी करो मंजिल तो वहीं है, बस तुम सही रास्ते पर चलो। सही है, भागोगे तो थक जाओगे हाँफ कर रूक जाओगे। रास्तों में जीने का हुनर सीख लो गिर कर उठने की कदर सीख लो। जीत जाओगे मंजिल.... जो रास्ते से जुड़ जाओगे। भागोगे तो थक जाओगे....