वार्तालाप अहम है!

             कल शाम बड़ी देर तक रास्ता देखती रही, तुम कुछ देर से घर आये,पूछने का मन तो हुआ फिर वही रोज-रोज की किच-किच का सोचकर चुप रह गयी। कल मेरी रचना प्रकाशित हुई थी। तुम्हें अखबार का पन्ना दिखाना चाहती थी, पर तुम थके हुए थे और परेशान करना सही नही लगा।
            दूसरी सुबह भी कुछ जल्दी निकल गए दफ्तर को साथ बैठ कर नाश्ता भी नही किया। कभी-कभी लगता है घर की चारदिवारी में हमारे बीच भी एक दिवार हैं। आज पड़ोस में रहने वाली सम्मति आयी  मुझे सोच में डूबा देख पूछ बैठी तो शब्द नहीं मिल रहे थे। कुछ ठीक नहीं है पर क्या ? ये तो मुझे भी नहीं मालूम।
           "जब मन अशांत हो और वजह साफ न हो, जो सर्वप्रथम आत्मध्यान एवं स्वयं से प्रश्न करना ही सबसे सही है।  और यदी दाम्पत्य जीवन में कुछ हलचल समझ आये तो साथी से मन की बात कहना और उसकी बात सुनना और समाधान निकालना जरूरी है रिश्तों में एक-दूसरे के बीच पारदर्शिता होना आवश्यक है नहीं तो रिश्तों में  मन की लहरें कब तूफान बन जाए पता नही चलता"।
          ये शब्द कहकर सम्मति उसके घर को चली गई, और मैं देर तक उसकी बात पर विचार कर तुमसे बात का निश्चय करके तुम्हारा नम्बर लगाया, तीन घण्टी के बाद तुमने फोन उठाया.."हम्म" बस ये जवाब दिया।
           "घर कब तक आओगे ? "
"नये प्रोजेक्ट पर काम चालू किया है देर हो जाएगी"
           एक बार मन में विचार आया तुम्हें काम के वक्त परेशान न करूं पर बात करने का मन भी था तो बोल बैठी..
"कभी काम से मेरे लिए भी वक्त निकाल लिया करिए, आज तो सुबह का नाश्ता भी साथ नही किया"
         उधर सुरेश को अपनी पत्नी को सुन कर आश्चर्य और ख़ुशी दोनों हो रही थी। काम और थकान के चलते सुलोचना को वक्त ही नहीं दे पाता था और फिर सुलोचना लेखन में व्यस्त हो गई तो दोनों के बीच बिन बोली खामोशी ने बसेरा बना लिया।कल अखबार में सुलोचना की लिखी कहानी देखी थी और पढ़ी भी पर व्यस्तता और थकान में सुलोचना को बताने का ध्यान नही रहा न ये बताने का की उसे कहानी बहुत पसंद आयी। आज सुलोचना की बात सुन उसे संतुष्टि हुई वे अब भी एक-दुजे को पूरा करते हैं।
"आज काम जल्द पूरा कर घर जल्दी आने की कोशिश करूंगा" सुरेश की ये बात सुन सुलोचना के चेहरे पर रौनक आ गई...
"बहुत अच्छी बात है, मैं खाना तैयार रखती हूँ, जल्दी आने की कोशिश करना"
"ठीक है "
          बात कुछ लम्बी या खास नहीं थी पर सुलोचना और सुरेश के लिए एक बड़े बदलाव की नींव थी। उधर सुलोचना सुरेश की पसंद की सब्जी रोटी और पुलाव बनाने में जुट गई तो इधर सुरेश चेहरे पर मुस्कान लिए जल्द काम निपटाने में लग गया।
         आज फिर  सुलोचना राह देखते बैठी पर आज कल की तरह खालीपन की जगह आशा लिए हुए। 7 बज गए सुरेश का कुछ पता नही खाना मेज से उठाने बढ़ी ही थी की वही आवाज जो पिछले 7 साल से सुरेश के आने की खबर उसकी गाडी गली में आते ही दे देती सुनाई पड़ी।
         सुलोचना दरवाजे पर पहुँची तो सुरेश को गाड़ी खड़ी करते देखा। सुरेश ने सुलोचना को देखा तो मुस्कुरा दिया और माफी मांगते हुए काम ज्यादा होने की बात बताई। घर में घुसते ही मनपसंद खाने की खुशबू पा कर सुलोचना की ओर मुडकर मुस्करा दिया, पर सुरेश की आँखों की चमक और चेहरे के भाव काफी थे सुलोचना के लिए।
           सुरेश फ्रेश होकर आया और दोनों खाने की मेज पर बैठ बिना कुछ कहे खाना खाने लगे। खाने के बाद सुलोचना मेज खाली करने लगी सुरेश रोज की तरह टीवी न देखकर वही पास में सोफे पर बैठ गया। सुलोचना जूठे बर्तन किचन में रखकर लौटी तो देखा सुरेश मेज साफ कर रहा था।
             सुलोचना वही खड़ी अपने पति को देखती रही सुरेश ने देखा तो मुस्करा दिया और कहा "खाना स्वादिष्ट था,  तुम बैठो ये मैं साफ कर देता हूँ।"
            सुलोचना की आंखें नम थी सुरेश ने आंसू देखे तो चिंतित हो गया और कारण पूछने लगा। तब सुलोचना ने बताया..
"कुछ समय से हम एक छत के नीचे रह कर भी अजनबी की तरह रह रहे हैं। कभी साथ सुकून से वक्त बिताने का समय भी नही। मन में कई विचार पनपने शुरू हो गए।"
             ये सुन कर सुरेश को समझ आया की घर में पसरी सन्नाटे की वजह केवल काम की व्यस्तता ही नही आपस में वार्तालाप की कमी भी है जो अंदर ही अंदर संबंधों को कमजोर कर रही थी। भावना मात्र होने से ही नही भावनाओं को शब्दों में परिवर्तित कर व्यक्त करना आवश्यक है।
            उस दिन से सुरेश और सुलोचना ने ये बात गांठ बांध ली...
          

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