सोचती हूँ!

चमक बहुत  है उसमे
सोचती हुँ वो चाँद तो नही ।

मुश्किल है उसे सच कहना
सोचती  हूँ वो ख्वाब तो नही।

आस-पास लगते हो
वाकई तुम साथ तो नही।

दर्द से ज्यादा तड़प है
तुम कहो ये दर्द अज़ाब तो नही।

हम तो कह देंगे  कुछ तुम  कहो
चुप -चुप हो कोई बात तो नही।

हाँ कुछ खींच-तान दरमियाँ है
मुँह फेर लो इतने बुरे हालात तो नही।

हम्म!  हवा का  बहाव भारी है
यूँ टूट जाते  वो कमजोर साख तो नही।

कहीं खोए हो या जुदा हो रहे हो
सोचती हूँ ये आखिरी  आदाब तो नही।

ख़्वाहिशें  राख हो गई  हाथ बढ़ाने से पहले
यूँ दूर हो जैसे हम आफताब तो नही।

Comments

Popular posts from this blog

Hope is all needed...

अब सुर में रहती हूँ

टीस........