ठोर न बदले...
यूँ तो बात बड़ी करते हो
मन की पीर भी हर न पाये।
तन माटी का लेकर घूमे
नीर लगे तो घुल-घुल जाये।।
कौन दीन का है तू इंसा
गलती करे फेर पछतावे।
कहाँ लगा भाग-दौड़ में
जहाँ से आयो बई ठोर है जाने।।
लम्बी कोई क्षण भर की
जो जिए वो जाको मोल न जाने।
कर दिजे नाश, माठी को राख
जितने व्यसन बे सब कर डाले।।
लक्षण खोये, खो दयो चरित
और बैठ सभा में सब गिनवावे।
शरम रही न बची प्रतिष्ठा
झूठे ठाठ को मर-मर जावे।।
ठाठ-बाट में कमी कछु नाई
अपने सुख से बड़ो कछु नाई।
दूजन के अवगुण सब दीख गये
अपने पाप नजर नही आवे।।
वाह रे, मानुस...
कौन सी धुन में रहे "नम्रता",
भांप बने जो उड़ जावेगो
वो खुद को परमेश्वर माने।।
सुख-दुःख में जो कटे काट ले
अपनो छोड़ पराये पे काये लार बहावे।
उसकी धुन में लग जा "भटके"
सुख-दुःख सब फिर मन को भावे।।
जितनी है जी भर के जी ले
जाने कब पूर्णविराम लग जाये।
पछतावा न रहे तनिक भी
जीते जी जो जी न पाये।।
तन माटी को लेकर घूमे
नीर लगे तो घुल-घुल जाये...
Very nice nimmu
ReplyDeleteThank you dear
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