अब सुर में रहती हूँ

मुझे सुनता है पर जवाब नही देता
सपनों के बुत बनाता जरूर है
बस उन्हें असलियत का लिबास नही देता। 

बडी चहलकदमी में रहता है ये मन
कुछ लम्हे क्या मिले फुरसत के
फिर इक लम्हा भी मिरे पास नही रहता।

जो साथ होता है तो दूर तक ले जाता है
मेरे शब्दों में आवाज नही होती
फिर भी ये मन मुझे बेसुरा बताता है।

बेसुरा कहे भी क्यों ना, परेशान जो है
मेरी बेवजह की जिद्द से हैरान जो है। 

कल ही किसी बात पर अड़ कर बैठी थी
फिर हुई सुबह और मैं सिर पकड़ कर बैठी थी। 

मुड़ना था बांए को, मैं दाएँ जाना चाहती थी
"लोग क्या-क्या सोचेंगे" ये सोच कर रूक जाती थी।

सच है ये मन परेशान तो बहुत है
मुझमे ही उडने का हौसला कम था
वरना खुले पंखों के लिए आसमान तो बहुत है।

थोड़ी देर से ही सही पर हिम्मत की
अब बुतों को लिबास दे दिए हैं 
इन पंखों को उडने को आसमान दे दिए हैं ।

मैं अब खुद को सुरीली लगती हूँ
जिद्द अब भी कुछ कम नही
बस अब सही-गलत का फर्क समझती हूँ। 


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